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श्रीमद् भागवतम
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श्लोक 65
श्लोक
10.47.65
तं निर्गतं समासाद्य नानोपायनपाणय: ।
नन्दादयोऽनुरागेण प्रावोचन्नश्रुलोचना: ॥ ६५ ॥
अनुवाद
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जब उद्धव प्रस्थान करने वाले थे, तब नन्द और अन्य लोग पूजा की अलग-अलग वस्तुओं को लेकर उनके पास पहुँच गए। आँसुओं से भरी आँखों से उन्होंने उद्धव को इस प्रकार संबोधित किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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