श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 62
 
 
श्लोक  10.47.62 
 
 
या वै श्रियार्चितमजादिभिराप्तकामै-
र्योगेश्वरैरपि यदात्मनि रासगोष्ठ्याम् ।
कृष्णस्य तद् भगवत: चरणारविन्दं
न्यस्तं स्तनेषु विजहु: परिरभ्य तापम् ॥ ६२ ॥
 
अनुवाद
 
  स्वयं लक्ष्मीजी और ब्रह्मा एवं अन्य सभी देवता, जो योग सिद्धि के स्वामी हैं, भगवान कृष्ण के चरण कमलों की पूजा केवल अपने मन में ही कर सकते हैं। किंतु रास नृत्य के समय कृष्ण ने इन गोपियों के स्तनों पर अपने चरण रख दिए और गोपियों ने उन्हीं चरणों का आलिंगन करके सारे दु:ख त्याग दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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