श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  10.47.53 
 
 
श्रीशुक उवाच
ततस्ता: कृष्णसन्देशैर्व्यपेतविरहज्वरा: ।
उद्धवं पूजयां चक्रुर्ज्ञात्वात्मानमधोक्षजम् ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी बोलते हैं : भगवान कृष्ण के सन्देशों से विरह का बुखार दूर होने पर गोपियों ने उद्धव जी को अपने भगवान कृष्ण से अभिन्न मानकर उनकी पूजा की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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