श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  10.47.51 
 
 
गत्या ललितयोदारहासलीलावलोकनै: ।
माध्व्या गिरा हृतधिय: कथं तं विस्मरामहे ॥ ५१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे उद्धव, उनके चलने का मनमोहक अंदाज़, उनकी उदार हँसी, चंचल दृष्टियाँ और मधुर वचन हमारे हृदय को चुरा चुके हैं, तो हम उन्हें कैसे भूल सकते हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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