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श्लोक 50
श्लोक
10.47.50
पुन: पुन: स्मारयन्ति नन्दगोपसुतं बत ।
श्रीनिकेतैस्तत्पदकैर्विस्मर्तुं नैव शक्नुम: ॥ ५० ॥
अनुवाद
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ये सब हमें सदैव नंद के पुत्र की याद दिलाते हैं। निःसंदेह, क्योंकि हमें कृष्ण के चरण-चिह्न दिखाई देते हैं, जो दिव्य चिह्नों से युक्त हैं, इसलिए हम उन्हें कभी नहीं भूल सकते।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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