श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  10.47.45 
 
 
कस्मात् कृष्ण इहायाति प्राप्तराज्यो हताहित: ।
नरेन्द्रकन्या उद्वाह्य प्रीत: सर्वसुहृद् वृत: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  परंतु राज्य जीत लेने, अपने शत्रुओं का वध कर लेने और राजकुमारियों से विवाह कर लेने के बाद कृष्ण यहाँ क्यों आने लगे? वे वहाँ अपने सभी मित्रों व शुभचिंतकों से घिरा रहकर प्रसन्न है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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