कथं रतिविशेषज्ञ: प्रियश्च पुरयोषिताम् ।
नानुबध्येत तद्वाक्यैर्विभ्रमैश्चानुभाजित: ॥ ४१ ॥
अनुवाद
श्रीकृष्ण समस्त प्रकार के माधुर्य के व्यापारों में निपुण हैं और नगर की स्त्रियों के प्रिय हैं। अब जबकि वे उनके मोहक शब्दों और संकेतों से लगातार पूजे जा रहे हैं, तो क्या वे उनके फंदे में नहीं फँसेंगे?