श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  10.47.41 
 
 
कथं रतिविशेषज्ञ: प्रियश्च पुरयोषिताम् ।
नानुबध्येत तद्वाक्यैर्विभ्रमैश्चानुभाजित: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  श्रीकृष्ण समस्त प्रकार के माधुर्य के व्यापारों में निपुण हैं और नगर की स्त्रियों के प्रिय हैं। अब जबकि वे उनके मोहक शब्दों और संकेतों से लगातार पूजे जा रहे हैं, तो क्या वे उनके फंदे में नहीं फँसेंगे?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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