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अध्याय 47: भ्रमर गीत
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श्लोक 40
श्लोक
10.47.40
कच्चिद् गदाग्रज: सौम्य करोति पुरयोषिताम् ।
प्रीतिं न: स्निग्धसव्रीडहासोदारेक्षणार्चित: ॥ ४० ॥
अनुवाद
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उद्धव, क्या गद का बड़ा भाई अब नगर वासियों को वो आनंद दे रहा है जो वास्तव में हमारा है? हम समझते हैं कि वो स्त्रियां उदार दृश्यों के साथ-साथ प्यार भरी शर्मीली मुस्कानों से उसकी पूजा करती होंगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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