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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 47: भ्रमर गीत
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श्लोक 37
श्लोक
10.47.37
या मया क्रीडता रात्र्यां वनेऽस्मिन्व्रज आस्थिता: ।
अलब्धरासा: कल्याण्यो मापुर्मद्वीर्यचिन्तया ॥ ३७ ॥
अनुवाद
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यद्यपि कुछ गोपियों को गोरधन ग्राम में ही रहना पड़ा था इसलिए वे रात में वन में आयोजित रास नृत्य में मेरे साथ क्रीड़ा नहीं कर पाईं, किन्तु फिर भी वे अत्यंत भाग्यशाली थीं। वास्तव में वे मेरी शक्तिशाली लीलाओं का ध्यान करके ही मुझे प्राप्त कर सकीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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