श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  10.47.36 
 
 
मय्यावेश्य मन: कृत्‍स्‍नं विमुक्ताशेषवृत्ति यत् ।
अनुस्मरन्त्यो मां नित्यमचिरान्मामुपैष्यथ ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  चूँकि तुम्हारे मन पूर्णतया मुझमें लीन रहते हैं और कोई अन्य चिंता तुम पर हावी नहीं रहती, तुम सदैव मेरा स्मरण करती हो और इसीलिए तुम लोग मुझे बहुत जल्द फिर से अपने सामने पा सकोगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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