वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
»
अध्याय 47: भ्रमर गीत
»
श्लोक 36
श्लोक
10.47.36
मय्यावेश्य मन: कृत्स्नं विमुक्ताशेषवृत्ति यत् ।
अनुस्मरन्त्यो मां नित्यमचिरान्मामुपैष्यथ ॥ ३६ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
चूँकि तुम्हारे मन पूर्णतया मुझमें लीन रहते हैं और कोई अन्य चिंता तुम पर हावी नहीं रहती, तुम सदैव मेरा स्मरण करती हो और इसीलिए तुम लोग मुझे बहुत जल्द फिर से अपने सामने पा सकोगी।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.