श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  10.47.35 
 
 
यथा दूरचरे प्रेष्ठे मन आविश्य वर्तते ।
स्‍त्रीणां च न तथा चेत: सन्निकृष्टेऽक्षिगोचरे ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब प्रियतम दूर होता है, तो स्त्री उसके विषय में अधिक सोचती है बजाय इसके कि जब वह निकट होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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