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श्लोक 34
श्लोक
10.47.34
यत्त्वहं भवतीनां वै दूरे वर्ते प्रियो दृशाम् ।
मनस: सन्निकर्षार्थं मदनुध्यानकाम्यया ॥ ३४ ॥
अनुवाद
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किंतु असल कारण यह है कि मैं तुम्हारे दृष्टि का आराध्य और प्यारा वस्तु हूँ, फिर भी मैं तुमसे बहुत दूर हूँ क्योंकि मैं तुम लोगों के मन में अपने लिए प्रगाढ़ चिंतन को प्रज्वलित करना चाहता हूँ और इस तरह तुम्हारे मनों को अपने अधिक निकट लाना चाहता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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