श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.47.32 
 
 
येनेन्द्रियार्थान् ध्यायेत मृषा स्वप्नवदुत्थित: ।
तन्निरुन्ध्यादिन्द्रियाणि विनिद्र: प्रत्यपद्यत ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे तुरंत जागने वाला व्यक्ति स्वप्न के विषय पर विचार कर सकता है, यद्यपि यह भ्रामक होता है। इसी प्रकार मन द्वारा मनुष्य इंद्रियविषयों का ध्यान करता है, जिन्हें बाद में इंद्रियाँ प्राप्त कर सकती हैं। इसलिए मनुष्य को पूर्णतः सतर्क रहना चाहिए और मन को वश में लाना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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