आत्मन्येवात्मनात्मानं सृजे हन्म्यनुपालये ।
आत्ममायानुभावेन भूतेन्द्रियगुणात्मना ॥ ३० ॥
अनुवाद
मैं अपनी निजी ऊर्जा, जिसमें भौतिक तत्व, इंद्रियाँ और प्रकृति के गुण शामिल हैं, के द्वारा स्वयं को बनाता हूँ, कायम रखता हूँ और फिर अपने आप में वापस ले लेता हूँ।