श्रीभगवानुवाच
भवतीनां वियोगो मे न हि सर्वात्मना क्वचित् ।
यथा भूतानि भूतेषु खं वाय्वग्निर्जलं मही ।
तथाहं च मन:प्राणभूतेन्द्रियगुणाश्रय: ॥ २९ ॥
अनुवाद
भगवान ने कहा, "तुम सच में कभी भी मुझसे अलग नहीं होते, क्योंकि मैं सारी सृष्टि की आत्मा हूँ। जैसे जल, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, ये सभी तत्व प्रकृति में हर एक चीज में मौजूद हैं, वैसे ही मैं हर किसी के मन, जीवन ऊर्जा और इंद्रियों में और साथ ही भौतिक तत्वों और प्रकृति के गुणों में मौजूद हूँ।"