सर्वात्मभावोऽधिकृतो भवतीनामधोक्षजे ।
विरहेण महाभागा महान्मेऽनुग्रह: कृत: ॥ २७ ॥
अनुवाद
हे परम भाग्यशालिनी गोपियो, तुम लोगों ने दिव्य स्वामी के लिए अनन्य प्रेम का अधिकार ठीक ही प्राप्त किया है। निस्सन्देह, कृष्ण के अलग होने पर उनके प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करके तुम लोगों ने मुझ पर महती कृपा दिखलाई है।