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श्लोक 25
श्लोक
10.47.25
भगवत्युत्तम:श्लोके भवतीभिरनुत्तमा ।
भक्ति: प्रवर्तिता दिष्ट्या मुनीनामपि दुर्लभा ॥ २५ ॥
अनुवाद
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भाग्यवश तुम सबों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति विशुद्ध और अद्वितीय भक्ति का एक स्तर स्थापित किया है - एक ऐसा स्तर जिसे साधु-संत भी मुश्किल से प्राप्त कर सकते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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