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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 47: भ्रमर गीत
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श्लोक 23
श्लोक
10.47.23
श्रीउद्धव उवाच
अहो यूयं स्म पूर्णार्था भवत्यो लोकपूजिता: ।
वासुदेवे भगवति यासामित्यर्पितं मन: ॥ २३ ॥
अनुवाद
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श्री उद्धव ने कहा: निस्संदेह, तुम सभी गोपियां हर तरह से सफल हो और दुनिया भर में पूजी जाती हो क्योंकि तुमने इस तरह से अपने मन को भगवान वासुदेव में समर्पित रखा है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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