श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  10.47.19 
 
 
वयमृतमिव जिह्मव्याहृतं श्रद्दधाना:
कुलिकरुतमिवाज्ञा: कृष्णवध्वो हरिण्य: ।
दद‍ृशुरसकृदेतत्तन्नखस्पर्शतीव्र-
स्मररुज उपमन्त्रिन् भण्यतामन्यवार्ता ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  छलपूर्ण शब्दों को सच मानकर हम उस काले हिरन की पत्नियों जैसी मूर्ख बन गईं जो क्रूर शिकारी के गीत पर भरोसा कर बैठती हैं। इस प्रकार हमने बार-बार उनके नाखूनों के स्पर्श से उत्पन्न काम की तीव्र पीड़ा को महसूस किया। हे दूत, अब कृष्ण के अलावा कुछ और बात करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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