श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.47.17 
 
 
मृगयुरिव कपीन्द्रं विव्यधे लुब्धधर्मा
स्‍त्रियमकृत विरूपां स्‍त्रीजित: कामयानाम् ।
बलिमपि बलिमत्त्वावेष्टयद् ध्वाङ्‍क्षवद्-
यस्तदलमसितसख्यैर्दुस्त्यजस्तत्कथार्थ: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  एक शिकारी की भाँति उन्होंने कपिराज को बाणों से निर्ममतापूर्वक बिंध डाला। क्योंकि वो एक स्त्री द्वारा जीते जा चुके थे तो उन्होंने एक दूसरी नारी को जिसे वो कामवासना से मिले थे विकृत कर दिया। इतना ही नहीं, बलि महाराज को भोगकर भी उन्होंने उन्हें रस्सियों से बाँध दिया जैसे वो कोई कौवा हो। इसलिए हमें इस श्यामवर्ण वाले लड़के से सारी मित्रता छोड़ देनी चाहिए भले ही हम उसके विषय में बातें करना बंद न कर पाएँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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