श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 46: उद्धव की वृन्दावन यात्रा  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  10.46.49 
 
 
किं साधयिष्यत्यस्माभिर्भर्तु: प्रीतस्य निष्कृतिम् ।
तत: स्‍त्रीणां वदन्तीनामुद्धवोऽगात् कृताह्निक: ॥ ४९ ॥
 
अनुवाद
 
  स्त्रियाँ यह चर्चा कर रही थीं कि "क्या वह अपने स्वामी के पिंडदान के लिए हमारे मांस का उपयोग करने जा रहा है, जो उसकी सेवाओं से बहुत प्रसन्न था?" उनकी चर्चा तभी समाप्त हुई जब प्रातःकालीन कृत्यों से निवृत्त हुए उद्धव वहाँ प्रकट हुए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत छियालीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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