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श्लोक 48
श्लोक
10.46.48
अक्रूर आगत: किं वा य: कंसस्यार्थसाधक: ।
येन नीतो मधुपुरीं कृष्ण: कमललोचन: ॥ ४८ ॥
अनुवाद
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"शायद अक्रूर वापस आ गया है—वही जिसने कंश की इच्छा पूरी करने के लिए कमल-नयनों वाले कृष्ण को मथुरा पहुंचाया था।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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