श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 46: उद्धव की वृन्दावन यात्रा  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  10.46.45 
 
 
ता दीपदीप्तैर्मणिभिर्विरेजू
रज्जूर्विकर्षद्भ‍ुजकङ्कणस्रज: ।
चलन्नितम्बस्तनहारकुण्डल-
त्विषत्कपोलारुणकुङ्कुमानना: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब व्रज की स्त्रियाँ मथानी की रस्सियाँ खींच रही थीं तो उनकी कंगन से लदी बाँहों और आभूषणों की चमक में दीपों का प्रकाश और अधिक उज्जवल लग रहा था। उनकी कमर, छाती और हार हिल रहे थे और उनके गालों पर कुंकुम की चमक के साथ कानों की बालियों की झिलमिलाहट उनके चेहरे को आलोकित कर रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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