श्रीसमुद्र उवाच
न चाहार्षमहं देव दैत्य: पञ्चजनो महान् ।
अन्तर्जलचर: कृष्ण शङ्खरूपधरोऽसुर: ॥ ४० ॥
अनुवाद
महासागर ने उत्तर दिया, "हे भगवान् कृष्ण, यह अपहरण मैंने नहीं किया बल्कि दिति के वंशज पंचजन नाम के एक दैत्य ने किया है, जो पानी में शंख के रूप में रहता है।"