श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 45: कृष्ण द्वारा अपने गुरु-पुत्र की रक्षा  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  10.45.38 
 
 
तथेत्यथारुह्य महारथौ रथं
प्रभासमासाद्य दुरन्तविक्रमौ ।
वेलामुपव्रज्य निषीदतु: क्षणं
सिन्धुर्विदित्वार्हणमाहरत्तयो: ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  "बहुत अच्छा," ऐसा वे दोनों असीम पराक्रम वाले महारथियों ने उत्तर दिया और तत्काल ही अपने रथ पर सवार होकर वे प्रभास की ओर रवाना हो गए। जब वे उस स्थान पर पहुँचे तो वे समुद्र तट तक पैदल गए और वहाँ बैठ गए। एक पल में ही समुद्र के देवता ने उन्हें परमेश्वर के रूप में पहचान लिया और श्रद्धा-रूप में अपनी भेंट लेकर उनके पास आए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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