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अध्याय 45: कृष्ण द्वारा अपने गुरु-पुत्र की रक्षा
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श्लोक 27
श्लोक
10.45.27
तेभ्योऽदाद्दक्षिणा गावो रुक्ममाला: स्वलङ्कृता: ।
स्वलङ्कृतेभ्य: सम्पूज्य सवत्सा: क्षौममालिनी: ॥ २७ ॥
अनुवाद
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वसुदेव ने इन ब्राह्मणों की पूजा की और उन्हें सुंदर आभूषण भेंट किए। उन्होंने उन्हें सुंदर आभूषणों से सजी, बछड़ों वाली गायें भी भेंट कीं। सभी गायों के गले में सोने का हार और सिर पर रेशम की माला थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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