श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 45: कृष्ण द्वारा अपने गुरु-पुत्र की रक्षा  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  10.45.24 
 
 
एवं सान्‍त्‍वय्य भगवान् नन्दं सव्रजमच्युत: ।
वासोऽलङ्कारकुप्याद्यैरर्हयामास सादरम् ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार नन्द महाराज और व्रज के अन्य लोगों को सान्त्वना देकर, अच्युत भगवान ने उन्हें वस्त्र, आभूषण, घरेलू बर्तन आदि उपहार देकर उनका आदर किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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