यात यूयं व्रजं तात वयं च स्नेहदु:खितान् ।
ज्ञातीन् वो द्रष्टुमेष्यामो विधाय सुहृदां सुखम् ॥ २३ ॥
अनुवाद
हे पिताजी, अब आप सब व्रज लौट जाएं। जब हम अपने मित्रों को सुख प्रदान कर देंगे तब हम जल्दी ही आप लोगों और अपने उन रिश्तेदारों से मिलने आएँगे जो हमारे वियोग में दुःखी हैं।