श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 44: कंस वध » श्लोक 50 |
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| | श्लोक 10.44.50  | |  | | मातरं पितरं चैव मोचयित्वाथ बन्धनात् ।
कृष्णरामौ ववन्दाते शिरसा स्पृश्य पादयो: ॥ ५० ॥ | | अनुवाद | | तत्पश्चात् कृष्ण और बलराम ने अपनी माँ और पिता को बंधन से मुक्त कराया और अपने सिर से उनके पैरों को छूकर उन्हें प्रणाम किया। | |
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