सर्वेषामिह भूतानामेष हि प्रभवाप्यय: ।
गोप्ता च तदवध्यायी न क्वचित्सुखमेधते ॥ ४८ ॥
अनुवाद
भगवान कृष्ण इस संसार के सभी जीवों को प्रकट करते हैं और उन्हें विलुप्त भी करते हैं। साथ ही, वे उनके पालनहार भी हैं। जो कृष्ण जी का तिरस्कार और अनादर करता है, वह कभी भी सुख और शांतिपूर्वक नहीं रह सकता है।