श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 44: कंस वध  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  10.44.39 
 
 
स नित्यदोद्विग्नधिया तमीश्वरंपिबन्नदन्वा विचरन् स्वपन् श्वसन् ।
ददर्श चक्रायुधमग्रतो यत-स्तदेव रूपं दुरवापमाप ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  कंस सदा ही इस विचार से विचलित रहता था कि भगवान उसे मार डालेंगे। इसलिए भगवान का हाथ में चक्र धारण किए हुए रूप उसे हर जगह दिखाई देता था - चाहे वह खा रहा हो, पी रहा हो, चल रहा हो, सो रहा हो या यहाँ तक कि साँस भी ले रहा हो। इस तरह कंस ने भगवान के समान रूप (सारूप्य) प्राप्त करने का दुर्लभ वर प्राप्त कर लिया।
 
 
 
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