श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 44: कंस वध  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  10.44.37 
 
 
प्रगृह्य केशेषु चलत्किरीटंनिपात्य रङ्गोपरि तुङ्गमञ्चात् ।
तस्योपरिष्टात् स्वयमब्जनाभ:पपात विश्वाश्रय आत्मतन्त्र: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  कंस के बाल पकड़कर और उसके मुकुट को ठोकर मारते हुए कमलनाभ भगवान ने उसे ऊँचे मंच से अखाड़े की मिट्टी पर फेंक दिया। फिर समस्त ब्रह्मांड के आश्रय, स्वतंत्र भगवान ने उस राजा पर छलाँग लगा दी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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