श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 44: कंस वध » श्लोक 33 |
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| | श्लोक 10.44.33  | |  | | वसुदेवस्तु दुर्मेधा हन्यतामाश्वसत्तम: ।
उग्रसेन: पिता चापि सानुग: परपक्षग: ॥ ३३ ॥ | | अनुवाद | | उस बेहद नीच और मूर्ख वसुदेव को मार डालो! और मेरे पिता उग्रसेन को उनके समर्थकों के साथ मार डालो, क्योंकि उन सभी ने हमारे दुश्मनों का पक्ष लिया है! | |
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