श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 44: कंस वध  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  10.44.24-25 
 
 
तथैव मुष्टिक: पूर्वं स्वमुष्ट्याभिहतेन वै ।
बलभद्रेण बलिना तलेनाभिहतो भृशम् ॥ २४ ॥
प्रवेपित: स रुधिरमुद्वमन् मुखतोऽर्दित: ।
व्यसु: पपातोर्व्युपस्थे वाताहत इवाङ्‍‍‍‍‍घ्रिप: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  इसी प्रकार मुष्टिक पर भगवान् बलभद्र ने अपने मुक्कों से प्रहार किया और उसका नाश कर दिया। भगवान् बलभद्र की बलिष्ठ हथेली का भयंकर घूँसा खाने से वह असुर भारी पीड़ा से काँपने लगा और रक्त की उल्टी करने लगा। तत्पश्चात् बेजान होकर जमीन पर उसी प्रकार गिर पड़ा जैसे वायु के झोंके से कोई वृक्ष धराशायी होता है।
 
 
 
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