श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 44: कंस वध  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  10.44.22-23 
 
 
नाचलत्तत्प्रहारेण मालाहत इव द्विप: ।
बाह्वोर्निगृह्य चाणूरं बहुशो भ्रामयन् हरि: ॥ २२ ॥
भूपृष्ठे पोथयामास तरसा क्षीणजीवितम् ।
विस्रस्ताकल्पकेशस्रगिन्द्रध्वज इवापतत् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  फूलों की माला से प्रहार करने पर जिस प्रकार हाथी को कुछ नहीं होता, उसी प्रकार असुर के प्रचंड वारों से भी विचलित न होते हुए भगवान् कृष्ण ने चाणूर की भुजाओं को पकड़कर कई बार उसे घुमाया और उसे ज़ोर से पृथ्वी पर पटका। उसके कपड़े, बाल और माला बिखर गए और वह पहलवान पृथ्वी पर गिरकर मर गया, मानो कोई विशाल उत्सव-स्तंभ गिर पड़ा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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