श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 44: कंस वध  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  10.44.16 
 
 
प्रातर्व्रजाद् व्रजत आविशतश्च सायंगोभि: समं क्‍वणयतोऽस्य निशम्य वेणुम् ।
निर्गम्य तूर्णमबला: पथि भूरिपुण्या:पश्यन्ति सस्मितमुखं सदयावलोकम् ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  जब गोपियाँ प्रातःकाल कृष्ण को गायों के साथ व्रज से बाहर जाते हुए या संध्या-समय उनके साथ लौटते हुए और बाँसुरी बजाते हुए सुनती हैं, तो वे उन्हें देखने के लिए अपने-अपने घरों से तुरंत बाहर निकल आती हैं। मार्ग पर चलते समय, उन पर दयापूर्ण दृष्टि डालते हुए उनके हँसी से परिपूर्ण मुख को देखने में सक्षम होने के लिए, उन सबों ने अवश्य ही अनेकों पुण्य कर्म किए होंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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