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श्लोक 35
श्लोक
10.42.35
कंस: परिवृतोऽमात्यै राजमञ्च उपाविशत् ।
मण्डलेश्वरमध्यस्थो हृदयेन विदूयता ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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कंस अपने मंत्रियों से घिरा हुआ राजमंच पर बैठ गया। किंतु अपने विविध सामंतों के बीच में बैठे हुए भी उसका हृदय काँप रहा था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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