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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना
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श्लोक 32
श्लोक
10.42.32
व्युष्टायां निशि कौरव्य सूर्ये चाद्भ्य: समुत्थिते ।
कारयामास वै कंसो मल्लक्रीडामहोत्सवम् ॥ ३२ ॥
अनुवाद
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जब आख़िरकार रात बीत गई और फिर से सूरज पानी से ऊपर निकला तो कंस भव्य कुश्ती उत्सव (दंगल) का आयोजन करने लगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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