श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.42.25 
 
 
अवनिक्ताङ्‍‍‍‍‍घ्रियुगलौ भुक्त्वा क्षीरोपसेचनम् ।
ऊषतुस्तां सुखं रात्रिं ज्ञात्वा कंसचिकीर्षितम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  कृष्ण और बलराम के चरण धोए जाने के उपरांत दोनों भाइयों ने खीर खाई। फिर यह जानते हुए भी कि कंस उनका वध करने का षडयंत्र रच रहा है, उन्होंने वहाँ चैन की नींद ली।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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