श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  10.42.16 
 
 
पुरुषैर्बहुभिर्गुप्तमर्चितं परमर्द्धिमत् ।
वार्यमाणो नृभि: कृष्ण: प्रसह्य धनुराददे ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  बहुत से लोग उस अति ऐश्वर्यशाली धनुष की रक्षा और पूजा कर रहे थे। कृष्ण उनके विरोध के बाद भी आगे बढ़े और उस धनुष को उठा लिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.