श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.42.14 
 
 
तद्दर्शनस्मरक्षोभादात्मानं नाविदन् स्त्रिय: ।
विस्रस्तवास:कवरवलया लेख्यमूर्तय: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  कृष्ण के दर्शन से नगर की नारियाँ कामदेव के वशीभूत हो उठीं। इस तरह उत्तेजित होकर वे अपना होश खो बैठीं। उनके कपड़े, चोटियाँ और कंगन बिखर गए, और वे एक तस्वीर में बनी आकृतियों की तरह जमी हुई खड़ी रहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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