तद्दर्शनस्मरक्षोभादात्मानं नाविदन् स्त्रिय: ।
विस्रस्तवास:कवरवलया लेख्यमूर्तय: ॥ १४ ॥
अनुवाद
कृष्ण के दर्शन से नगर की नारियाँ कामदेव के वशीभूत हो उठीं। इस तरह उत्तेजित होकर वे अपना होश खो बैठीं। उनके कपड़े, चोटियाँ और कंगन बिखर गए, और वे एक तस्वीर में बनी आकृतियों की तरह जमी हुई खड़ी रहीं।