श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 42: यज्ञ के धनुष का टूटना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.42.13 
 
 
विसृज्य माध्व्या वाण्या ताम्व्रजन् मार्गे वणिक्पथै: ।
नानोपायनताम्बूलस्रग्गन्धै: साग्रजोऽर्चित: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कृष्ण उसे मीठी बातें कहकर विदाई देकर आगे बढ़े। रास्ते में व्यापारियों ने उनका सम्मान किया और उनके बड़े भाई के साथ-साथ भगवान कृष्ण को भी पान, माला और सुगंधित वस्तुओं से भेंट दी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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