प्रभु ने देखा कि मथुरा के ऊँचे-ऊँचे द्वार तथा घरों के प्रवेशद्वार स्फटिक के बने थे, इसके विशाल तोरण तथा मुख्य द्वार सोने के थे, इसके अन्न गोदाम तथा अन्य भण्डार ताँबे तथा पीतल के बने थे और इसकी परिखा अप्रवेश्य थी। मनोहर उद्यान तथा उपवन इसकी शोभा बढ़ा रहे थे। मुख्य चौराहे सोने से बनाये गये थे और इसकी इमारतों के साथ निजी विश्राम-उद्यान थे, साथ ही व्यापारिकों के सभाभवन तथा अन्य अनेक इमारतें थीं। मथुरा मोर तथा पालतू कबूतरों की बोलियों से गूंज रहा था, जो जालीदार खिड़कियों के छेदों पर, रत्नजटित फर्शों पर तथा खंभेदार छज्जों और घरों के सामने के सज्जित धरनों पर बैठे थे। ये छज्जे तथा धरने वैदूर्य मणियों, हीरों, स्फटिकों, नीलमों, मूँगों, मोतियों तथा हरित मणियों से सजाये गये थे। समस्त राजमार्गों तथा व्यापारिक गलियों में जल का छिड़काव हुआ था। इसी तरह पार्श्व गलियों तथा चबूतरों को भी सींचा गया था। सर्वत्र फूल मालाएँ, नव अंकुरित जौ, लावा तथा अक्षत बिखेरे हुए थे। घरों के दरवाजों के प्रवेशमार्ग पर जल से भरे सुसज्जित घड़े शोभा दे रहे थे जिन्हें आम की पत्तियों से अलंकृत किया गया था और दही तथा चन्दनलेप से पोता गया था। उनके चारों ओर फूल की पंखुड़ियाँ तथा फीते लपेटे हुए थे। इन घड़ों के पास झंडियाँ, दीपों की पंक्ति, फूलों के गुच्छे, केलों के तथा सुपारी के वृक्षों के तने थे।