नमस्ते वासुदेवाय सर्वभूतक्षयाय च ।
हृषीकेश नमस्तुभ्यं प्रपन्नं पाहि मां प्रभो ॥ ३० ॥
अनुवाद
हे वासुदेव के पुत्र, तुम्हें नमन है। तुममें ही सब प्राणियों का वास है। हे मन और इंद्रियों के अधिपति, मैं फिर से तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे स्वामी, मैं आपके शरण में आया हूँ। मेरी रक्षा कीजिए।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत चालीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।