श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.40.30 
 
 
नमस्ते वासुदेवाय सर्वभूतक्षयाय च ।
हृषीकेश नमस्तुभ्यं प्रपन्नं पाहि मां प्रभो ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे वासुदेव के पुत्र, तुम्हें नमन है। तुममें ही सब प्राणियों का वास है। हे मन और इंद्रियों के अधिपति, मैं फिर से तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे स्वामी, मैं आपके शरण में आया हूँ। मेरी रक्षा कीजिए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत चालीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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