श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.40.3 
नैते स्वरूपं विदुरात्मनस्ते
ह्यजादयोऽनात्मतया गृहीता: ।
अजोऽनुबद्ध: स गुणैरजाया
गुणात् परं वेद न ते स्वरूपम् ॥ ३ ॥
 
 
अनुवाद
भौतिक प्रकृति और सृष्टि के अन्य तत्व निश्चित रूप से आपको उस रूप में नहीं जान सकते जिस रूप में आप हैं क्योंकि वे निष्क्रिय पदार्थ के क्षेत्र में प्रकट होते हैं। चूँकि आप प्रकृति के गुणों से परे हैं, इसलिए इन गुणों से बंधे हुए ब्रह्माजी भी आपके वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाते हैं।
 
भौतिक प्रकृति और सृष्टि के अन्य तत्व निश्चित रूप से आपको उस रूप में नहीं जान सकते जिस रूप में आप हैं क्योंकि वे निष्क्रिय पदार्थ के क्षेत्र में प्रकट होते हैं। चूँकि आप प्रकृति के गुणों से परे हैं, इसलिए इन गुणों से बंधे हुए ब्रह्माजी भी आपके वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाते हैं।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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