श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.40.27 
 
 
नोत्सहेऽहं कृपणधी: कामकर्महतं मन: ।
रोद्धुं प्रमाथिभिश्चाक्षैर्ह्रियमाणमितस्तत: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरी बुद्धिमत्ता इतनी कमज़ोर है कि मैं अपने मन को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं जुटा पा रहा हूँ। मेरा मन भौतिक इच्छाओं और कामों से भटका हुआ है और मेरी जिद्दी इंद्रियाँ इसे लगातार इधर-उधर घसीट रही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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