श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.40.26 
 
 
यथाबुधो जलं हित्वा प्रतिच्छन्नं तदुद्भ‍वै: ।
अभ्येति मृगतृष्णां वै तद्वत्त्वाहं पराङ्‌मुख: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक मूर्ख व्यक्ति पानी के अंदर उगी हुई वनस्पतियों के कारण छिपे हुए जल को अनदेखा करके रेगिस्तान के भ्रम में दिखाई देने वाले जल के लिए दौड़ता है, उसी प्रकार मैंने आपसे मुँह मोड़ रखा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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