श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 39: अक्रूर द्वारा दर्शन  »  श्लोक 51-52
 
 
श्लोक  10.39.51-52 
 
 
सुमहार्हमणिव्रातकिरीटकटकाङ्गदै: ।
कटिसूत्रब्रह्मसूत्रहारनूपुरकुण्डलै: ॥ ५१ ॥
भ्राजमानं पद्मकरं शङ्खचक्रगदाधरम् ।
श्रीवत्सवक्षसं भ्राजत्कौस्तुभं वनमालिनम् ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  अनेक बहुमूल्य रत्नों से सुशोभित मुकुट, कड़े और बाजूबंदों से सजे और करधनी, जनेऊ, वक्ष हार, नूपुर और कुंडल पहने प्रभु चमचमाती तेजोमयता से जगमगा रहे थे। एक हाथ में उन्होंने कमल का फूल धारण कर रखा था और बाकी हाथों में शंख, चक्र और गदा थी। उनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न, चमकीला कौस्तुभ मणि और फूलों की माला शोभायमान थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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