श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 39: अक्रूर द्वारा दर्शन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.39.23 
 
 
सुखं प्रभाता रजनीयमाशिष:
सत्या बभूवु: पुरयोषितां ध्रुवम् ।
या: संप्रविष्टस्य मुखं व्रजस्पते:
पास्यन्त्यपाङ्गोत्कलितस्मितासवम् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  इस रात के बाद का सवेरा मथुरा की स्त्रियों के लिए बेशक शुभ होगा। अब उनकी सारी आशाएँ पूरी होंगी। क्योंकि जैसे ही व्रजपति उनके शहर में कदम रखेंगे वैसे ही वे उनके मुख से निकलती मुस्कान के अमृत का पान कर लेंगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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