श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 39: अक्रूर द्वारा दर्शन  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  10.39.22 
 
 
न नन्दसूनु: क्षणभङ्गसौहृद:
समीक्षते न: स्वकृतातुरा बत ।
विहाय गेहान् स्वजनान् सुतान्पतीं-
स्तद्दास्यमद्धोपगता नवप्रिय: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  हाय! नंद का बेटा जो पल भर में प्रेममयी मैत्री को तोड़ सकता है, अब हमारी ओर सीधे देख भी नहीं सकता। उसके वश में होकर उसकी सेवा करने के लिए हमने अपने घर, संबंधी, बच्चे और पति तक छोड़ दिए, परंतु वह हमेशा नए-नए प्रेमियों की खोज में रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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